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‘हंस’ न केवल हिंदी की सबसे प्रख्यात और प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में से एक है, बल्कि यह हिंदी साहित्य के विकास और सामाजिक-राजनीतिक चेतना को बढ़ावा देने में भी एक मील का पत्थर रही है। वाराणसी में वर्ष 1930 में प्रख्यात साहित्यकार प्रेमचंद द्वारा स्थापित इस पत्रिका ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी और समाज के विभिन्न पहलुओं को अपनी लेखनी के माध्यम से उजागर किया। इस पत्रिका के संपादकीय मंडल में शुरुआत में सामाजिक क्रांति के मंत्रद्रष्टा महात्मा गांधी और कथाकार कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी शामिल थे। पत्रिका ने शुरू से ही सामाजिक कुरीतियों, असमानता और औपनिवेशिक दमन के खिलाफ आवाज उठाई।

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1936 में प्रेमचंद के निधन के बाद शिवरानी देवी, श्रीपत राय, शिवदान सिंह चौहान, रामविलास शर्मा, त्रिलोचन, शमशेर, अमृतराय जैसी विभूतियां ‘हंस’ के संपादकीय दायित्व का कुशल निर्वाह करती रहीं। फिर वित्तीय कठिनाइयों और राजनीतिक दबावों के कारण 1956 में इसे बंद करना पड़ा। हालांकि, यह बंदी स्थाई नहीं थी।

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प्रेमचंद और शिवरानी देवी

1986 में प्रख्यात साहित्यकार और उपन्यासकार राजेन्द्र यादव ने ‘हंस’ को पुनर्स्थापित किया। उनके नेतृत्व में पत्रिका ने न केवल अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त किया, बल्कि यह हिंदी साहित्य में नए विचारों और लेखकों का मंच बन गई।

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राजेन्द्र यादव ने पत्रिका को समकालीन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से जोड़ा, जिसमें लैंगिक समानता, दलित चेतना और यौन स्वतंत्रता जैसे विषय शामिल थे। उनके संपादन में ‘हंस’ ने स्त्रीवादी और दलित लेखकों को विशेष स्थान दिया, जिसने हिंदी साहित्य में एक नई क्रांति को जन्म दिया। उनके कार्यकाल में कई लेखकों को मंच मिला, जो आज एक प्रख्यात नाम हैं और जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी। 2013 में राजेन्द्र यादव के निधन के बाद उनकी बेटी रचना यादव ने पत्रिका की जिम्मेदारी संभाली। पत्रिका के वर्तमान संपादक कथाकार एवं उपन्यासकार संजय सहाय हैं।

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'हंस' अगस्त 1986 अंक

‘हंस’ एक प्रगतिशील कथा मासिक पत्रिका है, जिसमें कहानियों के अतिरिक्त लेख, समीक्षा, संस्मरण, कविताएं, ग़ज़ल, लघुकथाएं और सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियां भी प्रकाशित की जाती हैं। पत्रिका ने हमेशा समकालीन मुद्दों को प्राथमिकता दी है। साथ ही डिजिटल युग में पत्रिका ने अपनी उपस्थिति को और मजबूत किया है। डिजिटल सदस्यता के साथ-साथ आप हमारी वेबसाइट पर पत्रिका का पीडीएफ संस्करण भी खरीद सकते हैं। ‘हंस’ हर वर्ष निर्णायकों द्वारा विभिन्न विधाओं से चुनें लेखकों को "राजेन्द्र यादव हंस सम्मान" से अलंकृत करता है। यह पुरस्कार लेखकों को न केवल सम्मान देता है, बल्कि उन्हें साहित्यिक जगत में स्वीकार्यता भी प्रदान करता है। ‘हंस’ पत्रिका हिंदी साहित्य का एक ऐसा मंच है, जो न केवल लेखकों को अभिव्यक्ति का अवसर देता है, बल्कि समाज की नब्ज को भी टटोलता है। प्रेमचंद की विरासत को आगे बढ़ाते हुए यह पत्रिका आज भी नए लेखकों को प्रेरित करती है और हिंदी साहित्य को समृद्ध करती है। चाहे वह सामाजिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणी हो या हाशिए पर जी रहे लोगों की आवाज को मंच देना, ‘हंस’ ने हमेशा अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है।

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राजेन्द्र यादव हंस कथा सम्मान

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